वृत्तांत- (6) सबे जीव के सरेखा ..रखना हे : भुवनदास कोशरिया

Guru Ghansidasघासी के बइला गाडी सोनखनिहा जंगल ल पार होगे ।अब छोटे ,छोटे जंगल, पहार, नदिया, नरवा अउ कछार ,उबड, खाबड खेती ,खार , रस्ता ल नाहकत हे । गाडी के खन खन ,खन खन करत घांघडा के आवाज ले बघुवा ,भलुवा चीतवा सब बांहकत हे ।गाडी के हच्चक हाइया होवाई से घासी ह कहिथे …….देखत हस सफुरा !ये रस्ता ल । कभु जंगल ,कभु झाडी कभु परवत ,कभु पहाड़ी । का ? का ? मिलिस हे ? अतका सुनत सफुरा ह कहिथे ……हमर पुनिया दादी ह काहय । “कहीं दुख हे , तो कहीं सुख हे ।कहीं उथला हे तो कहीं गहरा हे ।कहीं धूप हे तो कहीं छांव हे । इही ह जिनगी के नाव हे “।अपन हाथ से हिरण ल सहलावत हे,दुलारत हे ,बेटा सोना ,बेटा सोना कहिके ओकर मुह म चुमत हे, पुचकारत हे ।घासी अउ सफुरा मुहाचाही गुठियावत हे ।बीच, बीच म सोना हिरण ल हुंकारू भरवावत हे।
गांव गांव म बूलकत ये बइला गाडी के देखनी होवत हे । दउडइया बइला बर पिथउरा काय हे, घंटा भर म अभरा दीच । पिथउरा सोनखनिहा राजा के ससुरारी रजवाडा ये ।दसकोशी के मन इंहा बजार करे बर आथे । आज बडे बाजार ये । सबे जीनिश के इंहा लेनदेन होथे ।चाऊर ,दार ,कपडा, लत्ता ,बरतन ,भाडा ,सोना ,चांदी, मिठाई ,जलेबी ,सबजी ,भाजी ,अउ माल मत्ता के भी बहुत बडे बाजार लगथे ।रस्ता म ही बइला के पसरा लगे हे ।दावन के दावन गाय,बइला, भैसी ,भैंसा के दो तीन दिन से ढार परे हे । नगपुरिहा ,बडारी ,देशटा, कनपुरिहा जेला जइसना चाही ओइसने मिलत हे ।छांटत हे ,कोई खूर देखत हे ,कोई पूंछ देखत हे ,कोई दांत देखत हे। उदंत हे ,के पुरोय हे ,कोई चर दत्ता हे, त कोई छै दत्ता ,कोई उतरहा ।बेचे अउ बिसाय बर कोचिया लगे हे ।कभु बेचाइया से दाम गिरावत हे ,कभु खरिदवइया से बोली बढवावत हे।कभु तुतारी से बइला के पखुरा म अरई झकावत हे ,त कभु पूंछी अइंठ के पीठ थपथपावत हे। बइला के तरमरावत चाल दिखावत हे।
खन खन ,खन खन घांघडा के आवाज ह सब ल चंउका दीच । घासी के बइला गाडी आवत हे ।बइला के रंग रूप अउ कद काठी बंधना ह सब के मन ल मोह लीच ।सब मुंह फार के देखते ही रहिगे ।अउ कहे लगिस वाह… वाह …का ? बइला ये। अइसना बइला तो बजार भर म नइ ये । पता नही येला कहां से उतारे हे? सब देखत हे गुठियावत हे।अउ गाडी बइला पिथउरा ल पार होगे ।
घासी के बइला गाडी ह, सिरपुर बेराछत पहुंचत हे ।बेरा फुल फुलाय लगगे हे । पीठ म कमरा, खुमरी टांगे ,अइंठी मुरेरी पागा बांधे, रिंगी चिंगी सलुखा पहिरे ,कान म चोंगी खोंचे ,घेंच म नोई ओरमाये ,गला म कऊडी ,ताबीज पहिरे हे ।डेरी हाथ म बसरी अउ जेउनी हाथ म तेंदूसार के लउठी पकडे ,पहाटिया बरदी ल धरसावत हे ।हररे…….हररे…..काहत हे …..सुऊऊऊऊऊ……….कहिके सुसरी बजावत हे ।ये बरदी म लागत गाय बछरू हे ,छोडावन हे ,कलोर हे, गाभिन हे ,दुदत्ता ,चारदत्ता ,छै दत्ता, पुरोय अउ उतरहा बइला भईसा घलो हे ।इही बरदी म बडे डिल्ला वाला खडा सींग ,छोटे कान ,लम्बी पूंछ अउ ऊंचा ,उदंत ,धौरा रंग म ,काला चितकबरा ,मरकनहा गोल्लर नन्दू घलो हे।कान म घांघडा के आवाज परते ही, ओ ह दउड पडथे ।बइला ल हुबेडथे अउ गाडी ल तो पलटीच कर देथे ।
सिरपुर म अंजोरी मंडल काहत लागय ।गांव के मातबड हे, आठ गांव के जमीदार हे । जमीदारी फौजदारी के सरकारी नर नियांव खुद करथे ।खेती किसानी बर नौकर चाकर अउ मुखतियार रखे हे ।एक खरिखा गाय गरुवा अउ एक खरीखा भैसी भैसा रखे हे ।चराय बर पहाटिया अउ ठेठवार रखे हे ।पशुधन के उन्नत नस्ल सुधार बर गोल्लर भी ढीले हे ।
आज अंजोरी ह पिथाउरा रस्ता के खेत देखे बर गे हे ।संझउती सब बनिहार भूतिहार घर लहुटत हे। ये रस्ता म बहुत बडे चरागन भाठा हे। कई खरिखा गाय गरवा चरत हे।घासी के बइला गाडी के आती होवत हे, पहाटिया मन के गरूवा धरसाती होवत हे ।घांघडा के आवाज ल सुन के गोल्लर नन्दीराज ह अरकट्टा दउडत आवत हे ।अंजोरी मंडल ह देख डरथे ,अरे !ये तो गोल्लर आवत हे ।घासी के बइला गाडी अभी थोडा दूर म हे।अंजोरी तेंदूसार के लउठी पकडे हे । अखाडा खेले कूदे है ।बुलंद कद चुस्त बदन के हे ।सादा के धोती कुरता पहिरे हे ।मुड म सादा के पागा बांधे हे।गोरा अंग हे, दमकत बरण हे।खांध के अंगोछा ल कनिहा म बांधत सब बनिहार मन ल कहिथे …….आवव…. आवव……ये गोल्लर ल लहुटावव।नही ते अलहन कर दीही । अंजोरी लउठी घुमा घुमाके गोल्लर ल लहुटावत हे ,गोल्लर बांहक बांहक के फेर आ जावत हे ।नौकर, चाकर अउ सब खेतिहार मन छेंकत हे। लेकिन गोल्लर हुंकर हुंकर के सब ल दउडा देवत हे ।
घासी दूरिहा ल देख लेथे। अपन गाडी बइला ल खडा कर देथे। अउ उतर के सब ल कहिथे …….छोड देवव ….छोड देवव ……आवन देवव ……आवन देवव । हुंकरत ,फुंसरत सींग ल डोलावत ,दउडत आवत गोल्लर ल घासी ह पुचकारथे ,कान ल पकडथे ,माथा ल चुमथे ,रमंजथे, घेंच ल पोटारथे ,पीठ ल थप थपाके दुलारथे ।अतेक मया पिरीत ल पा के अतेक मरकनहा गोल्लर घलो परेम के भाखा जानथे ।घासी ल सूंघे लगथे, चांटे लगथे अउ सिग ल हिला हिला के अपनो परेम ल दिखाय लगथे ।
खेत ल लहुटत सब खेतिहार मन के भीड ह देखे बर सकलाय लगथे ।अचरूत हो जथे ।कतनो गाडी बइला ल हुबेड चुके हे ,पलट चुके हे। आज कइसे कांहिच नइ करिस। अंजोरी ह घासी के पास आ जथे। सफुरा घलो गाडी ल उतर जथे ।बेटी दमांद ल देख के सब गांव के आदमी मन खुश हो जथे ।सफुरा अउ घासी अंजोरी के पांव पायलगी करथे ।गांव के बेटी दमांद ये ,कहिके सबके सब आशीष देवत हे ……खुश राहव बेटी , आनंद मगन राहव ।
गाडी म रखे हिरण ल, देख के सब पूछे लगथे ।सोनखनिहा जंगल के होय घटना ल सफुरा जब सब ल बताय ,तो सब के मुंह से आ..हा..आ.. ..हा..आ… हा…के दर्दीला आवाज उंकर हिरदे ल निकले ल लगगे ।सबके जीव ह धक ल होगे।उही भीड म मंगतू गोड ह घलो हे । ओ ह कहिथे …मोरो तो ससुरार उही सोनाखान म हे ।कुर्रू पाट म देवी ह ,संउहत बिराजे हे । बाघिन के सवारी हे ।अवइया जवइया मन ल रकतटीका देये बर लगथे । हर साल उंहा छंटवा ,छंटवा बछवा, पडवा, बोकरा, भेडवा अउ हजारो जीव के पुजई करे जाथे। नइते कांही न कांही, अनहोनी घटना होके रहिथे ।कतनो तो बाघिन के खाजी होगे हे ।रस्ता ह टूट गे हे। ओ रस्ता म, तेंह आय हस गा दमांद घासी । धन हे ,तोर किस्मत, बांच गेयच तेला मनौती मना ,अउ लहुटे के बेरा उंहा ,खच्चित रकत टीका देइच देबे ।
घासी ह कहिथे …..देख गा सियान ,ये दुनिया म जड अउ चेतन दो चीज होथे ।जेमा चेतन ल खाय पीये के जरूरत पडथे अउ जड ल नइ पडय ।कुर्रूपाट म जो देवी ये कहिथे, ओ ह पथरा ये गा ।अउ पथरा ह जड आय ।ओ ह का ला खाही गा ।पुजई के नाव म जतना जीव काटथे ओला तो मनखेच मन खाथे गा ।देखत हव सब अपन अपन घर म कइसे बेटा, बेटी बरोबर ये बछवा ,पडवा ,बोकरा, भेडवा ल पोसे पाले रहिथव।अपन घर के पशुधन निरीह अउ मुक परानी ल अपन आंखी के सामने खचाखच कटवा देथव ।धन है तुंहर जीव, दया, मया ,करूणा नइ लागय ,तुंहर हिरदे म संवेदना कइसे नइ जागय ।ये पथरा म ,देवी अउ देवता के नांव म, भय अउ भरम फैलाय हे, जे इंकर बात नइ मानय ,तेकर हत्या करके ये देवी रिसाय हे ,कहिके नाम लगाथे । लूट, पाठ ,चोरी, डकैती अउ हत्या के अपराध छिपाय बर किसिम किसिम के कथा कहानी रचवाय हे ।
Kosariyaघासी ह कहिथे……आप सब इंकर कहानी म मत आय करव ।ये सब ल जाने समझे के बात ये । कोई पथरा म ,कोई देवी देवता नइ ये ।अउ येला न कोई चीज खाय के जरूरत हे ।ये धरती म जितना भी जीव हे ,सब हमरे बराबर हे ,अउ हम सब ल ये धरती म रहे के जरूरत हे, तभे तो सब ल इंहा जनम मिले हे । अउ मनखे ल भी इंहे जनम मिले हे ।लेकिन मनखे के जनम सबसे सरस हे, सबल हे ,ज्ञान वान हे ,येकरे सती तो सबसे जादा येकरे गरज हे ,कि सब मे ” जियव अउ जियन दव ” के भाव जगावै । पेड ,पौधा से लेकर चिरई, चिरगुन ,चांटी ,हाथी तक के सरेखा रखै । आवव आज हम सब परण करिन कि सबे जीव ल एके बरोबर मानबो , जीव हत्या ल सबसे बडे अपराध मानबो ,सबे जीव परयावरन के सहयोगी संगी साथी ये । ये धरती म सबे जीव ल समोखबो । पिरीत पियार के मेलजोल अइसे बढाबो कि दया ,मया ,करूणा ,क्षमा के भाव आ जाय। सेवा ,जतन अउ रक्षा अइसे करबो ,कि सबे जीव के सरेखा हो जाय ।
घासीदास की जय ……
घासीदास की जय …..
जयकारा होय लगथे
अउ सब अपन अपन घर जाय लगथे ………..
*जयसतनाम*

भुवनदास कोशरिया
भिलाईनगर
9926844437

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One Thought to “वृत्तांत- (6) सबे जीव के सरेखा ..रखना हे : भुवनदास कोशरिया”

  1. Hemlal Sahu

    bahut sunder vitant rachna he aapman la badhai ho

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